अपना वजूद
अपना वजूद " मैं कहां पहुंच गया, सोचकर बेचैन हूं, जो देखा था सपना, उससे मरहूम हूं, जो वादा किया था, खुद के जिन्दगी से, पूरा कर ना सका, बडा बेचैन हूँ, एक मुसाफिर ही हैं, हम जीवन की यात्रा के, चलते रहना है बस, मुकद्दर मेरा, राह में चाहे उलझने हों, कितनी बडी, उनसे लडना ही है, जीवन की हर घडी, हार जीत का कोई प्रश्न नहीं, अपने अस्तित्त्व का प्रश्न, बन यहां खडा हूँ, मैं कहां पहुँच गया, सोच कर बेचैन हूँ, बेचैन हूँ ।।