बदलते दौर
बदलते दौर में हर इंसान अकेले हो गया, आपसी रिश्तों में एक खालीपन हो गया, अब ना वक्त है किसी के पास, ना ही प्रेम की अभिव्यक्ति, अब तो रिश्तों में सिर्फ दिखावा रह गया, हर इंसान अपनी ही अलग, दुनिया बनाये बैठा है, सोशल मिडिया में ही, अपना घर बसाये बैठा है, फ़ेसबुक,इंस्टाग्राम,twiter, में सिमट कर रह गया, बदलते दौर में हर इंसान, अकेला रह गया । यह एक त्रासदी है जो हर इंसान में आयी , रिश्तों की दूरी मजबूरी बन आयी, ऐसा है यह दौर जिसमे, शुन्य ऐसा आ गया, बदलते दौर में हर इंसान अकेला रह गया ।।