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सियासत और सत्ता

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"सियासी खेल" सियासी खेल में जनता बनी है मोहरा, क्या कहूँ मेरे भाई यह खेल बहुत है गहरा, सत्ता की चाह में जाति धर्म बांट देते हैं, वोटों की राजनीति में मन्दिर मस्जिद, का नाम लेते हैं, लोकतंत्र आज बन गया है एक प्रश्न, हर दल एक दूसरे पर लगाते आरोपों का दंश, जनता तो चुपचाप देखती है तमाशा, टीवी चैनलों पर नेता करते, एक दूसरे का खुलाशा, कौन ईमानदार कौन भ्रष्ट है भई, सियासत के हमाम सबके चेहरे है कई, जनता उलझी है की किसको चुने वो, दावे तो सब करते हैं, पूरा करते नहीं वो, चलो एक बार फिर देखते हैं लोकतंत का मेला, जिसमें मोहरा बने जाति धर्म का खेला ।।