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घायल परिंदा हूँ

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एक परिंदा आकाश में स्वछंद, उड रहा अचानक धरती पर आ गिरा, किसी ने तीर ऐसा चलाया, की परकटा धरती पर आ गिरा, पंख घायल हो गये ऐसे, की अब उड नहीं सकता जीवन भर, एक हसरत भरी निगाहों में, दर्द से तड़पता अश्रु भर , एक सवाल था उसकी निगाहों में, की मेरी खता क्या थी ? मैं तो नीले आकाश मे बादलों, संग अठखेलियां कर रहा था, फिर मुझ्रे ऐसी सजा क्यों ? क्या मेरे किस्मत की सजा है, या कुदरत की ना इंसाफ़ी, कोई तो बताओ मेरी खता क्या है ? मेरी खता क्या है ??? “घायल परिंदा हूँ, फिर उडने के लिये जिन्दा हूँ ।”