किताबों के बोझ से दबा बचपन

बचपन क्या है ?
एक मासूम, निश्छल, स्वच्छ, निर्मल एहसास, जिसे जीवन का मतलब बस इतना ज्ञात है कि खेलना, मस्ती करना और माता पिता का प्यार । स्वच्छंद बचपन जिसेजीवन की विसंगतियों का कुछ भी भान नहीं, उसे तो सिर्फ खाना पीना खेलना बस इतना ही जीवन की समझ है  ।
बचपन जब माता पिता की महत्वाकांक्षाओ से जुड जाता है तो बचपन एक निश्चित समय सीमा में बंधकर रह जाता है ।
मासूम शिक्षा के नाम पर एक निश्चित समय सीमा में कैद कर दिया जाता है उसका हर कार्य का शैड्यूल बना दिया जाता है ।
कितने बजे उठना है,स्कूल का होमवर्क करना है,कब स्कूल जाना है, कब ट्यूशन जाना है, ट्यूशन का होमवर्क करना है,  कुछ समय खेलना, खेलने के नाम पर मोबाइल या कम्प्यूटर पर गेम खेलना, कब सो जाना है ।
एक मासूम जिसकी उम्र 3,4,5 साल की होती है उसे मशीन बना दिया जाता है ।
बच्चों की जितना वजन नहीं होता उसके बराबर बैग में रखी किताबों का वजन होता है ।
क्या यह मासूमों के  साथ अन्याय नहीं  ? माता पिता अपने महत्वाकांक्षाओ को पूर्ण करने के लिए अपने ही बच्चों के साथ अन्याय नहीं करते हैं ।
हर माता-पिता को यह समझना चाहिए कि बच्चों की भावनाओं को समझें उन्हें रोबोट ना बनायें ।बच्चों को अपने सम्मान का सामान ना बनाये, 
उन मासूमो को इंसान से रोबोट ना बनाये ।।



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