दानवीर कर्ण

"महाभारत में कर्ण "

महान योध्दा:
कर्ण एक महान योद्धा था, वह परशुराम शिष्य महान धनुर्धर और दुर्योधन का मित्र था । कर्ण और दुर्योधन की मित्रता संसार का सबसे बडा उदाहरण है । कर्ण को ज्ञात हो गया था की वह ज्येष्ठ कौन्तेय है फिर भी अपने वचन और मित्रता का मान रखने के लिये कौरवों के पक्ष से युद्ध करने का निर्णय लिया ।
महान दानवीर:
कर्ण महान दानवीर और प्रतापी था, सूर्योदय सूर्य भगवान को अर्घ देते समय जो भी कुछ मांगता वह अवश्य देता था, इसका सबसे बडा प्रमाण है छल से इन्द्र भगवान ने उसका कवच कुंडल मांगा, यह जानते हुए की छल से इन्द्र भगवान मांग रहे हैं फिर भी उसने अपना कवच कुंडल दन में दे दिया ।
सूर्य पुत्र कर्ण:
कर्ण सूर्य पुत्र था, सूर्य का आशीर्वाद था, परन्तु एक कुन्ती की भूल का परिणाम था । कुन्ती को दुर्वासा ऋषि ने वरदान दिया था जिसका सच जानने के लिये कुन्ती ने सूर्य देव आवाहन किया जिसके फलस्वरुप कर्ण का जन्म हुआ, जिसे सामाजिक परिनिन्दा से बचने के लिये गंगा मे बहा दिया । कर्ण का लालन पालन अधीरथ एवं राधा ने किया,इसलिये राधेय कर्ण के नाम से प्रसिद्ध था ।
श्री कृष्ण का मित्र एवं भक्त:
कर्ण श्री कृष्ण का मित्र एवं परम भक्त था । श्री कृष्ण जी के बार बार समझाने के बावजूद उसने दुर्योधन के पक्ष में किया और वीरगति को प्राप्त हुआ, वह युद्ध का परिणाम जानता था की जिस पक्ष से स्वयं श्री कृष्ण हैं बिजय उसी की होनी है, जीत तो धर्म की होगी ।
उपसंहार:
कर्ण एक महान दानी, पराक्रमी शूरवीर था, अपने वचन और मित्रता के मान के लिये अपने ही भाईयों पांडवो से युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुआ ।
नोट: कर्ण का चारित्र कैसा लगा कमेंट अवश्य कीजियेगा ।

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