पतझड़
"पतझड़ "
पतझड़ में पेड़ों के पत्ते
एक एक कर गिर जाते हैं,
बसंत ऋतु के आते ही,
नई कोपलें फूटती हैं,
हरे भरे नये पत्तों से,
गुलजार हुआ प्यारा उपवन,
तीव्र पवन वेग से गीतों,
का प्यारा सरगम,
प्रकृती की यह मनमोहक,
आभा जीवन का संदेश परम,
वक्त का पहिया घूमता रहता,
कभी हरियाली कभी पतझड़ बन,
मानव जीवन भी जुडा हुआ,
ईश्वर की मर्जी का संगम ।।
एक एक कर गिर जाते हैं,
बसंत ऋतु के आते ही,
नई कोपलें फूटती हैं,
हरे भरे नये पत्तों से,
गुलजार हुआ प्यारा उपवन,
तीव्र पवन वेग से गीतों,
का प्यारा सरगम,
प्रकृती की यह मनमोहक,
आभा जीवन का संदेश परम,
वक्त का पहिया घूमता रहता,
कभी हरियाली कभी पतझड़ बन,
मानव जीवन भी जुडा हुआ,
ईश्वर की मर्जी का संगम ।।
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