जीने की शिद्दत

इन आखों में उदासी है मगर,
एक आशा का दीप जलाये रखा है,
वक्त कितना भी विपरीत हो मगर,
एक विश्वास बनाये रखा है ।

समय रुकता नहीं कभी,
वह तो स्वयं ही कट जाता है,
रात कितनी भी लम्बी हो मगर,
सूरज निकलते प्रकाश फैल जाता है ।

यही नियत है प्रकृती की,
यही कुदरत की सच्चाई है,
जीवन में कभी प्रकाश की
झिलमिल तो कभी अंधेरों,
की गहराई है ।।

पाषाण को नदी की तीव्र धारा,
के वेग से लडना पडता है,
महान बनने के लिये हर कष्ट,
सहना पडता है,
जिसने जीत लिया खुद को,
इतिहास में नाम अमर करता है ।।

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