ख्वाहिशें

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ख्वाहिशें कुछ और हैं

वक्त की इल्तिज़ा कुछ और है

कौन जी सका है जिंदगी अपनी मर्जी से

वक्त का तकाजा कुछ और है ।

इंसान लाख अपने जीने का सलीका बनाए

होता वही है जो नियत की कसौटी है

पल भर में बदल जाती है जिंदगी की तस्वीर

क्योंकि वक्त की मंशा कुछ और ही है ।

हजारों ख्वाहिशें दम तोड देती है

वक्त की बिसात पर जिंदगी जीने के लिए

गिरकर उठना ही पड़ता है

हिम्मत इंसान करे तो वक्त को भी झुकना पड़ता है ।।

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