महाभारत में श्री कृष्ण (एक कुशल राजनीतिक)

प्रस्तावना:
 महाभारत हमारे हिन्दू धर्म का महाकाव्य है जिसकी रचना महर्षि व्यास जी ने की है । महाभारत में मुख्य पांडवों और कौरवों के आत्मसम्मान का टकराव दिखाया गया है । पांडवों की सहनशीलता और कौरवों का अत्याचार, विशेषकर दुर्योधन का अभिमान और शकुनि का षड्यंत्र ही महाभारत का परिणाम है ।
महाभारत मैं श्री कृष्ण:
महाभारत मैं श्री कृष्ण भगवान की भूमिका एक सफल राजनैतिक की तरह थी ।श्री कृष्ण जी का अवतार ही हुआ था, उस समय के अत्याचारी और अधर्मियों का अंत करने के लिए और धर्म की स्थापना के लिए । महाराजा कंस, युवराज दुर्योधन, शिशुपाल जो  भी राजा अधर्म और अत्याचार के प्रतीक थे उनका सर्वनाश करना और पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करना ।
महाभारत युद्ध का कारण:
दुर्योधन और शकुनि के षड्यंत्रों का कारण, द्रौपदी का वस्त्र हरण का कुत्सित प्रयास,  नारी जाति के सम्मान की रक्षा और नारी के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए दुराचारियों, हठधर्मियों का  सर्वनाश ही महाभारत युद्ध का मुख्य उद्देश्य था ।
महाभारत युद्ध में पांडवों को विजय दिलाने के लिए श्री कृष्ण ने राजनीति और कूटनीति का भी सहारा लिया ।
 "श्री कृष्ण जी ने गीता में कहा है कि दुष्ट व्यक्ति को दंड देना भी धर्म का पालन ही है,  अधर्म का साथ देने वाला भी दंड का भागी होता है ,इसलिए तो पितामह भीष्म,  आचार्य द्रोण,और कर्ण को भी दुर्योधन का साथ देने के लिए मृत्यु का आलिंगन करना पडा ।
जीवन का संदेश:
महाभारत जीवन का संदेश है कि सत्य और धर्म कभी पराजित नहीं हो सकता, परेशान हो सकता है पर अंततः विजय सत्य और धर्म की ही होती है ।
कौरवों और पांडवों के मध्य महभारत में पांडव धर्म के प्रतीक थे, इसके लिए वासुदेव श्री कृष्ण ने सदा साथ दिया । भगवान श्री कृष्ण उनके साथ थे क्योकि वे धर्म और सत्य का सदा पालन किये इसलिए विजय श्री का सम्मान उनको मिला ।
" जब जब अधर्म बढ जाता है धर्म की स्थापना के लिए, मानव कल्याण के लिए मैं मानव रूप में अवतार लेकर पृथ्वी पर आता हूँ ।" 

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