मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भगवान (LORD RAMA)


संछिप्त परिचय :

 श्री राम भगवान की जन्म भूमि :

देवभूमि उत्तरप्रदेश का अयोध्या जनपद मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भगवान की  जननी जन्मभूमि है। चक्रवर्ती राजा दशरथ के पुत्र श्री राम भगवान थे , उनकी माता राजमाता कौशल्या थी। 

राजा दशरथ जी के चार पुत्र; श्रीराम, श्री भरत,श्री लक्ष्मण और श्री शत्रुघ्न थे ।

रामायण महाकाव्य: की रचना महर्षि भगवान वाल्मीकि जी ने देवॠषि नारद, ब्रम्हा जी के आदेश से की थी, जिसमें श्रीराम जी के सम्पूर्ण जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है ।

श्रीरामचरितमानस: महाकाव्य गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है जो भगवान श्री राम का सम्पूर्ण जीवन चरित्र का सजीव चित्रण है ।

श्री राम का जन्म: श्रीराम का अवतार देवभूमि उत्तर प्रदेश के अयोध्या नगर में हुआ था, जहाँ अवधी भाषा का प्रचार प्रसार है । अवधी भाषा की मिठास भगवान श्री राम के जन्म के समय की मंगल बधाई:-

भये प्रगट कृपाला दीन दयाला, 

कौशल्या हितकारी, 

हर्षित महतारी, मुनिमन हारी, 

अद्भुत रूप बिचारी ।।

श्री राम की शिक्षा: राज दशरथ जी के चारों पुत्रों की शिक्षा महर्षि वशिष्ठ जी के यहाँ हुई थी जो दशरथ जी के कुल गुरू थे ।

श्री राम भगवान विष्णु जी के अवतार थे ,उनका उद्देश्य अत्याचार और अधर्म का अंत करना, और धर्म की स्थापना करना था । मानव जीवन की रक्षा और सन्मार्ग का मार्ग प्रशस्त करना ।



मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम :

मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है ? 

श्री राम ने अपने पूरे जीवन में मानव जीवन के श्रेष्ठ मर्यादा का पालन किया , उनका चरित्र जीवन के श्रेष्ठ नैतिक मूल्यों का ज्वलंत उदहारण है जो सदियों से मानव जीवन के  प्रेरणा स्रोत है और युगों युगों तक मानव जीवन को सन्देश देता रहेगा। 

एक पुत्र के नैतिक मूल्यों का श्रेष्ठ उदहारण , पिता के दिए वचनों को पूरा करने के लिए चौदह वर्षों का वनवास सहर्ष स्वीकार किया। 

 एक श्रेष्ठ भाई श्री  राम भगवान ने  एक श्रेष्ठ  भाई का उदहारण मानव जीवन के सामने प्रस्तुत किया , भातृत्व  प्रेम  बड़ा कोई धर्म है। 

एक पति - सीता माता के रूप में लक्ष्मी स्वरूपा पत्नी के लिए एक अनन्य प्रेम  समर्पण का भाव  सम्मान , मानव जीवन  के लिए दिशा निर्देश , नारी  सम्मान सबसे उत्तम धर्म है। 

एक राजा - एक राजा अपने पत्नी का त्याग मात्र इसलिए कर देता है क्योंकि प्रजा के मन में एक शंका माता सीता के चरित्र के सन्दर्भ में , इस लोकापवाद के लिए अपने सद्चरित्र पत्नी का त्याग मानव समाज के लिए सन्देश।   राजा अपने प्रजा रंजन के लिए उनके शंकाओं के समाधान अपने पत्नी का परित्याग कर राज धर्म का सन्देश मानव जीवन कल्याण के लिए उत्कृष्ण  है। 

उपसंहार :

मानव जीवन सदैव अपने इतिहास , सनातन धर्म , नैतिक मूल्यों का निर्धारण , पौराणिक ग्रंथों , उपनिषदों , महाकाव्यों और उनमें वर्णित जीवन मूल्यों को जीवन चरित्र , सामाजिक मानदंडों का पैमाना मानकर जीवन यात्रा पूरी करता है। मानव जीवन का मूल्य इन्ही मानदंडों के आधार पर निर्धारित किया जाता है।  हमारे धर्म हमें जीवन की सर्वोच्च मान्यताओं के आधार पर जीने की प्रेरणा देते हैं , ताकि मानव जीवन सार्थक, सद्चरित्र , धर्मपरायण बना रहे। 





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